दिल को छू गए ये ग़ज़लें! जब टेरेस पर जमा हुई दिल्ली के 4 मशहूर शायरों की महफ़िल

परिचय (Introduction):

दिल्ली के मशहूर शायरों - कान्हा कंबोज, अभिसार शुक्ला, अंकित मिश्रा, और कुणाल वर्मा - ने एक छत पर (Terrace) महफ़िल जमाई, जहाँ मोहब्बत, तन्हाई, और ज़िंदगी के फ़लसफ़े पर एक से बढ़कर एक शायरी पेश की गई। रात की चाँदनी में, इन शायरों की आवाज़ ने कुछ ऐसा जादू किया कि हर दिल जज़्बातों के सैलाब में बह गया। यह महफ़िल सिर्फ एक इवेंट नहीं, बल्कि जज़्बातों का सैलाब थी।

पेश हैं इस शाम के कुछ यादगार और बेहतरीन अशआर, जिन्हें सुनकर दिल को सुकून मिला:


1. मोहब्बत और यादों के नक़्शे (Nakshe of Love and Memories)

शायरों ने महबूब और उससे जुड़ी हसीन यादों को अपनी शायरी में कुछ यूँ पिरोया:

उससे मिलने की तेज़ ख़्वाहिश में बदली जो बसें याद है मुझको, *गाल के तिल का तो नक़्शा है पता, आपकी नसें याद है मुझको।


एक दिन भीग गए थे दोनों, एक झगड़ा जो बिना बात का था, कितना नज़दीक गए थे दोनों।


वो मुझसे कुछ ऐसे आँख मिलाता है, दरिया जैसे प्यासा पास बुलाता है।


जो मुझे एक बात कहने को तीन-तीन दिन सताया करता था, बस ये "लव यू" नहीं कहा उसने, वैसे पूरा जताया करता था।


2. महफ़िल, दुनियादारी और ज़िन्दगी (Life, Society, and the Gathering)

ज़िंदगी और समाज की कड़वी सच्चाईयों को बयाँ करते हुए कुछ तीखे शेर:

महफ़िल में पीने आए हैं तो पीजिए मगर, पहले ये पूछ लीजिए किसकी शराब है!


दो ही तरह के लोग हैं दुनिया में अब के वक़्त, कोई गिलास है यहाँ कोई शराब है।


वफ़ा का नहीं आएगा नंबर यहाँ पर, हवस का ही बचा है समंदर यहाँ पर।


शहज़ादी! तेरे अश्क अगर बहे तो फिर, तेरा गुलाम आग लगा देगा ज़माने को।


3. जुदाई, तन्हाई और दिल का हाल (Separation, Loneliness, and the Heart)

टूटे हुए दिल और जुदाई के गहरे दर्द को बयाँ करते हुए शायरों के सबसे संजीदा अशआर:

तू समझता नहीं है यार थोड़ा चक्कर है, तेरी ख़ुशी ये कागज़ी हँसी से ऊपर है।


मेरा एक दोस्त था अब मिल नहीं रहा मुझको, बाबू भैया ये सारा लड़की का चक्कर है।


इश्क़ में पाबंदी मतलब दिल पिंजरे में, दिल पंछी मौक़ा मिलते उड़ जाता है।


कोई भी ख़ुद से कभी ख़ुदकुशी नहीं करता, उदासी बैठ के उसकी कलाई काटती है।


पहले लगती थी मुझको वो सबसे हसीं, अब तो हँसते हुए भी बुरी लगती है।


4. आख़िरी और यादगार शेर (The Final Memorable Couplet)

इस शाम का सबसे बेहतरीन और गहरा संदेश देने वाला शेर जो महफ़िल को एक नए मुक़ाम पर ले गया:

देर तक मैंने भी तुझे रोकना चाहा, तू भी झटकती रही कलाई देर तक।


समापन:

यह शाम शायरी और दोस्ती के नाम रही, जहाँ हर शेर ने श्रोताओं के दिल को छुआ। शायरी की यह महफ़िल साबित करती है कि जज़्बात आज भी लोगों को एक-दूसरे से जोड़ने की सबसे बड़ी ताक़त हैं। अगर आपको यह शायरी पसंद आई हो तो इसे शेयर ज़रूर करें!


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2 line shayari


ज़िन्दगी ये चाहती है कि  खुद-खुशी कर लूं,
मैं इस इंतज़ार में हूँ की कोई हादसा हो जाये 

Zindagi ye chahti hai ki khud-khushi kar lun,
Main is intezaar main hun ki koi haadsa ho jaye

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जब भी टूटो, अकेले में टूटना,

कम्बख्त ये दुनिया तमाशा देखने में माहिर है...!

jaab bhi tutna akele me tutna
kambhkat ye duniya tamasha dekhne me mahir hai

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मैं कितना अकेला हूँ तुम्हें कैसे बताऊं 
तन्हाई भी हो जाती है तन्हा मेरे अंदर 

अब्बास कमर

main kitana akela hoon tum kaise bataoon
 tanahee bhee ho jaoonga tanha meree andar

Abbas Qamar

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उन्हीं रास्तों ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे
मुझे रोक रोक पूछा तेरा हमसफ़र कहाँ है

बशीर बद्र

Unhi raasto ne jis par kabhi tum the sath mere
Mujhe rok rok pooncha tera humsafar kaha hai

Bashir Badr


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ab to ye bhi nahin raha ehsas dard hota hai ya nahin hota 
ishq jab tak na kar chuke rusva aadmi kaam ka nahin hota 

Jigar Moradabadi

अब तो ये भी नहीं रहा एहसास दर्द होता है या नहीं होता 
इश्क़ जब तक न कर चुके रुस्वा आदमी काम का नहीं होता 

जिगर मुरादाबादी 


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hua jb ghm say ghalib


Mirza Ghalib
Mirza Ghalib



                                    Na tha kuch to Khuda tha, kuch na hota to Khuda hota
duboya mujh ko hone ne, na hota main to kya hota

hua jab gam se yun behis to gam kya sar k katne ka
na hota gar juda tan se to zannon par dhara hota

hui muddat k 'Ghalib' mar gaya par yad ata hai
wo har ek bat pe kahna k yun hota to kya hota

Mirza Ghalib